‘नारी नाम सम्मान’, International Women’s Day पर महिलाओं ने शेयर किए अपने अनुभव

Ambika Sharma
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Womens day talk show: नारी सम्मान, संसार और परिवार सभी की पहचान है। एक महिला ही है जो परिवार और समाज के लिए हमेशा तैयार रहती है। अपनी पहचान को पहले न रखकर परिवार और समाज के लिए काम करना ये सिर्फ वही कर सकती है। हमारे आस—पास भी ऐसी कई महिलाएं होती हैं जो हर वर्ग में अपने कामों से पहचान बनाने में कामयाब हुई हैं।

अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर मार्निंग न्यूज इंडिया ने ‘नारी नाम सम्मान’ कार्यक्रम के ​जरिये, ऐसी ही कुछ महिलाओं से बात की जो अपनी मेहनत के बल पर एक मुकाम बनाने में कामयाब हुई। यही नहीं आज समाज और महिलाओं के लिए एक मिसाल बन रही हैं। Women’s Day Talk Show कार्यक्रम का संचालन अम्बिका शर्मा ने किया।

इन सभी के वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें।

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परिवार का साथ बनाता है महिलाओं को ताकतवर

महिला का नाम कभी पुरुषों के पीछे नहीं उनके आगे लिया जाता है। सीता—राम हो या राधे—श्याम इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। भारत को विश्व में पहचान दिलाने में भी महिलाएं ही भूमिका निभा रही हैं। आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। ​वो चाहे देश के बड़े फैसले लेना हो या परिवार और समाज के। बस उन्हें चाहिए होता है परिवार और समाज का साथ। फिर महिला क्या नहीं कर सकती। ये कहना है दीपा नाथावत का। जो परिवार के साथ से हर मंजिल को पाते हुए आगे बढ़ रही हैं। पत्रकारिता में मुकाम हासिल कर आपने राजनीति की राह चुनी। उनका मानना है कि महिला हर मुकाम को हासिल कर सकती है। बस जरूरत है खुदकी ताकत को पहचानने की और परिवार के साथ की।

दीपा नाथावत, प्रदेश मंत्री महिला मोर्चा बीजेपी, राजस्थान

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दूसरों के जीवन में खुशियां भरती हैं महिलाएं 

नारी समृद्ध, सशक्त और सुदृढ़ है। किसी को भी उसे कमजोर नहीं समझना चाहिए। एक महिला जब अपनी ताकत समझती है तो उससे ताकतवर कोई नहीं होता। मैं भी एक प्राणिक हीलर होने के साथ बच्चों और महिलाओं के लिए अपनी ओर से हर सम्भव कोशिश करती हूं। अपनी संस्था के जरिये हम सिर्फ खाना और कपड़े ही नहीं खुशियां बांटने का काम करते हैं। इसके लिए बच्चों को किताबें बांटे या कपड़े। वहीं महिलाओं को उनकी जरूरत के सामान दिलाने से लेकर जरूरतमंदों को दवाएं और मेडिकल सुविधा उपलब्ध करवाते हैं। जिससे किसी के चेहरे पर दुख न रहे। ये खासियत सिर्फ महिलाओं में ही होती है। वो परिवार ही नहीं किसी अंजान के दुख को भी बखूबी जान लेती है।

वर्तिका खण्डेलवाल, प्राणिक हीलर, फाउन्डर मौलिक फाउन्डेशन

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सपने देखती नहीं ​बुनती हैं महिलाएं 

हम महिलाएं सपने देखती ही नहीं सपने सजाती भी हैं। महिला ज​ब बच्चे को जन्म देने की ताकत रखती है तो वो क्या नहीं कर सकती। मेरा मानना है कि हमसे अच्छा फाइटर और कोई नहीं हो सकता। मैं भी घर, परिवार के साथ अपना काम भी कर रही हूं। इसलिए जानती हूं कि हर महिला में वो इच्छा शक्ति होती है, कि अपनी मंजिल वो अपने बल पर जीत सकती है। फेल होने से डरने की जगह ​उससे सीखना चाहिए। आज अपने बल पर जयपुर में एक फर्निशिंग स्टोर चला रही हूं। इसलिए कह सकती हूं कि बस हिम्म्त से आग ​बढ़ते रहें तो ​कोई भी काम मुश्किल नहीं है।

रितिका गर्ग, बिजनेस वुमन

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खुद की कद्र करना सीखें महिलाएं

ये सिर्फ एक महिला की ही ताकत होती है, कि अपने घर को छोड़कर किसी दूसरे घर में जाकर उसे भी अपना बना ले। जिंदगी भी ऐसी ही होती है, हर जगह बदलाव आपके लिए इं​तजार करते हैं। ​करियर जब अच्छा चल रहा था तो परिवार और बच्चे के लिए उसे छोड़ा। तब ठान लिया कि कुछ तो करना है बस बच्चे की परवरिश पर कोई असर न पड़े। स्कूटर से कुर्तियां बेची, आर्टिफिशियल ज्वेलरी बेची, स्कूल में टीचिंग की बस सपने देखना नहीं छोड़ा। मैं हर महिला को यही कहती हूं कि खुदकी कीमत जानें तभी दूसरे आपकी कीमत और कद्र करेंगे।

प्रीति शर्मा, बिजनेस वुमन और शिक्षिका

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मेहनत ने ​दिया मंजिल का रास्ता

अपने पैरों पर खड़ा होना एक लड़के से ज्यादा लड़की के लिए जरूरी होता है। ये मुझसे बेहतर और कौन जान सकता है। पति और परिवार से प्रताड़ित होने के बाद मैंने खुद के पैरों पर खड़े होने की ठानी। यहीं से शुरू हुआ मेरा और ऑटो का साथ। जयपुर की पहली महिला ऑटोड्राइवर होने का सफर आसान नहीं रहा। सभी ने कई सवाल उठाए और कई परेशानियां खड़ी की। फिर भी मैं रुकी नहीं और आज यही मेरी पहचान बना है। यही नहीं नृत्य से प्यार ने एक नृत्यांगना के तौर पर मुझे पहचान दिलवाई। बस फिर क्या था, रास्ते बनते गए और मंजिल मिलती गई। आज कई फिल्मों में काम कर चुकी हूं और देश विदेश में भी लोग मुझे पहचानते हैं।

हेमलता कुशवाहा, ऑटो ड्राइवर, कलाकार

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शिक्षा होती है महिलाओं की दोस्त

शिक्षा का साथ सबसे बड़ा होता है। हम अगर शिक्षा को अपना दोस्त बनाते हैं तो वो हमेशा साथ देती है। मैं भी बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थी। जिसमें मेरे दादाजी और पिताजी का साथ सबसे ज्यादा रहा। आज बच्चियां शिक्षा को लेकर सजग हैं बस उन्हें सही रास्ता मिलना चााहिए। फिर वो क्या नहीं कर सकती। मेरा तो यही मानना है कि बेटे और बेटी को बराबर मानना चाहिए। समाज को सश​क्त बनाना है तो नारी को आर्थिक रूप से मजबूत करना जरूरी है। जिसके लिए महिला को ही अपने लिए आवाज उठानी होगी।

डॉ.योगिता जोशी, ​प्रिंसिपल वेदांता स्कूल

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लहंगा चुन्नी से कॉस्ट्यूम का सफर नहीं रहा आसान

अस्थमा से पीड़ित डॉ. अंजू मीणा ने ये कभी नहीं सोचा था कि वो एक दिन बॉडी बिल्डिंग का प्रोफेशन चुनेगीं। अंजू मीणा ने न केवल इस प्रोफेशन को चुना बल्कि इसको एक हाइट पर लेकर गई। नेशनल्स लेवल पर भी इस प्रोफेशन को रिप्रजेंट कर चुकी हैं। वे बतातीं हैं कि ये सफलता उन्हें यूं ही नहीं हासिल हुई इसके लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी। समाज परिवार की सुननी पड़ी। पारंपरिक परिधान लहंगे चुनड़ी को छोड़कर एक बॉडीफिट यूनीफॉर्म में परफॉर्म करना आसान नहीं था। मुंबई में नेशनल खेल रहीं थी और घर से फोन आता है, कि इतने छोटे कपड़ों में क्या ये तुम ही वेट लिफ्टिंग कर रही हो। उस समय अंजू के पैरों से जमीन खिसक गई। लेकिन उन्होंने हौसला नहीं हारा और अपनी उड़ान भरनी कायम रखी।

डॉ. अंजू मीणा, बॉडी बिल्डिंग एथ​लीट

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परिवार की रौनक होती हैं महिलाएं 

महिला हर त्योहार की हर समाज रह परिवार की रौनक होती है। ऐसे विचारों की धनी डॉ. हेमलता शर्मा पेशे से एक अध्यापिका हैं। हेमलता शर्मा का विजन है खुबक साथ परिवार, समाज, प्रकृति पर्यावरण का विकास किया जाना चाहिए। वे कहती हैं कि महिलाएं अच्छी मनोचिकित्सक होती हैं। वे भली प्रकार से चीजों को भांप लेती है कि आगे क्या होने वाला है। इसलिए टीवी में सबसे ज्यादा ऐड महिलाएं ही बनाती हैं। अपने परिवार की पहली ऐसी सदस्य थीं। जिन्होनें MSC,PHD की डिग्री हासिल की। और कई अच्छे संस्थानों में कार्यरत रहीं। फिलहाल वे जयपुर में शिक्षा से जुड़ी हुई हैं। वे ऐसी महिलाओं और लड़कियों की मदद करती हैं जिनके पास फीस के नाम पर देने को कुछ नहीं होता है। महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देती हैं।

डॉ. हेमलता शर्मा, एजुकेशनिस्ट

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जमाने के साथ लड़कर हासिल की शिक्षा 

शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐसा नाम एक ऐसी शख्सियत जिसने खुद भी जमाने के साथ लड़कर शिक्षा प्राप्त की तो वहीं आज लड़कियों की शिक्षा के लिए लड़ रहीं हैं। जय जानकी का उद्घोष कर पुष्पा झा बताती हैं कि वो बिहार के मधुबनी में एक छोटे गांव से बिलोंग करती हैं। जहां गांव की लड़कियों को शिक्षा के लिए एक गांव से दूसरे गांव जाना पड़ता था। परिवार की मदद से उन्होने स्कूल जाना तो शुरु कर दिया लेकिन गांव वालों ने चेतावनी दी कि अगर बच्चियां स्कूल गई तो आपके घर का ना नमक खाएंगें और ना ही पानी पीएंगें। लेकिन पुष्पा का परिवार इस बात नहीं माना और पुष्पा को पूरी पढ़ाई करवाई। अपने विचार व्यक्त करते हुए बतातीं हैं कि महिलाओं के साथ हर समय भेदभाव और अत्याचार होते रहे हैं, मां जानकी से लेकर मीरा तक। आज की पढ़ी लिखी नारी भी इस समस्या से जूझ रहीं हैं। इसलिए आज समाज की जरुरत है कि पहले से ही बच्चों को ऐसी शिक्षा दी जाए कि वो महिलाओं को सम्मान दें। महिलाओं को बराबरी का दर्जा दें।

पुष्पा झा, एजुकेशनिस्ट

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