आज के समय में भारतीय परिवारों में आम तौर पर बच्चों को पढ़ाई-लिखाई के लिए ज्यादा से ज्यादा मजबूर किया जाता है. मां-बाप बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, पुलिस, कलेक्टर आदि बनाने के सपने देखते हैं. हालांकि कई बार बच्चों को घर-परिवार से यह भी सुनने को मिलता है कि पढ़ लिखकर कौनसा Collector बन जाएगा.
कई दफ़ा घर परिवार के लोग, दोस्त-यार तो कभी रिश्तेदार बच्चों से मजाकिया अंदाजा में या तंज कसते हुए ऐसा कहते है तो बच्चों की ओर से भी मिली-जुली प्रतिक्रिया मिलती है. वे भी कह देते है कि हां पढ़-लिखकर कौनसा कलेक्टर बन जाऊंगा. लेकिन शायद अब बच्चों का और लोगों का नजरिया बदल जाए.
अब बच्चे कहे कि, ‘हां पढ़-लिखकर कलेक्टर तो बनूंगा लेकिन किसी की औकात नहीं पूछूंगा’. दरअसल यह परिवर्तन एक कलेक्टर के कारण देखने को मिल सकता है. देश का युवा अब एक ऐसा कलेक्टर बनना चाहेगा जो जिम्मेदार और ऊंचे पद पर बैठने के बावजूद अपने निचले तबके से उसकी औकात नहीं पूछेगा.
Collector का पद बेहद गरिमापूर्ण होता है. इस पद पर बैठे शख्स की जिम्मेदारी होती है कि वो इसकी गरिमा बनाकर रखें. शहंशाह की तरह यह पद होता है लेकिन इस पर बैठकर हिटलर या तानाशाह की तरह बर्ताव नहीं करना चाहिए. जैसा कि मध्यप्रदेश के शाजापुर के कलेक्टर ने किया.
शाजापुर के कलेक्टर किशोर कन्याल (Shajapur Collector Kishore Kanyal) के बुरे बर्ताव ने कलेक्टर के पद पर कई सवाल खड़े कर दिए. उनका बिगड़ा हुआ लहजा और तीर की तरह चुभते शब्द एक मजदूर को ही नहीं बल्कि देशभर के लोगों को नागवार गुजरे.
Shajapur Collector Kishore Kanyal ट्रक ड्राइवरों के साथ बैठक कर रहे थे. ट्रक ड्राइवरों को समझाते हुए उन्होंने कहा कि कोई भी कानून अपने हाथ में नहीं लेगा. इस पर एक ट्रक ड्राइवर ने कहा कि अच्छे से बोलो. यह सुनकर कलेक्टर साहब का पारा चढ़ गया. कलेक्टर ने कहा कि, समझ क्या रहा है, क्या करोंगे तुम, तुम्हारी औकात क्या है.
बस ये चंद शब्द और उस ड्राइवर सहित न जाने कितने ही लोगों की भावनाओं को कलेक्टर साहब ने पल भर में ठेस पहुंचा दी. साहब ने माफी मांग ली है लेकिन उन्हें माफ़ किया कि नहीं इस बात की हम तो पुष्टि नहीं करते हैं. खैर देश का बच्चा-बच्चा अब यही कहेगा कि, ‘हां पढ़-लिखकर Collector बनूंगा, लेकिन किसी की औकात नहीं पूछूंगा’. वैसे जब हम किसी से उसकी औकात पूछते है तो शायद उसी पल हम उसे अपनी औकात भी बता देते हैं.