AI यानी कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लोगों को काफी उम्मीदें है. बताया जा रहा है कि आने वाला समय इसी का है. हालांकि इसकी शुरुआत में ही लोग इसका गलत इस्तेमाल कर रहे है और लोगों तक गलत जानकारी पहुंचा रहे है. हाल ही में इससे संबंधित एक बड़ा कांड ऑस्ट्रलियाई शोधकर्ताओं ने किया है.
ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं ने बनाए फर्जी क्लीनिकल ब्लॉग
ऑस्ट्रेलिया में एडिलेड के फ्लिंडर्स विश्वविद्यालय के दो शोधकर्ताओं ने एक बड़ा कांड कर दिया है. सुरक्षा की दृष्टि से काफी अहम माने जा रहे AI को इन शोधकर्ताओं ने आईना दिखा दिया है. शोधकर्ताओं ने 65 मिनट में एआई की मदद से स्वास्थ्य संबंधित दुष्प्रचार के ब्लॉग बना दिए. ये ब्लॉग कई भाषाओं में तैयार हुए है. इन्हें जेएएमए इंटरनल मेडिसिन में प्रकाशित किया गया है.
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AI का साइड इफेक्ट जांचने की कोशिश
बताया जा रहा है कि फ्लिंडर्स विश्वविद्यालय के दो शोधकर्ताओं ने यह कारनामा एआई का साइड इफेक्ट जांचने के लिए किया है. इसमें AI की पोल खुल गई है. इससे पूरी हेल्थ इंडस्ट्री में बवाल मच गया है. स्वास्थ्य उद्योग पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
झूठ को सच मान लेते हैं लोग
AI एक ऐसी तकनीक है जिससे गलत या झूठी जानकारी भी सच लगने लगती है. इसकी मदद से तैयार फोटो और वीडियो में भी कुछ ऐसा ही होता है. फार्मासिस्ट ब्रैडली मेन्ज जो कि मुख्य शोधकर्ता है उन्होंने बताया है कि हम यह जांचना चाहते थे कि ऐसे लोग जो AI तकनीक का गलत इस्तेमाल करके सुरक्षा उपायों को तोड़ना चाहते है क्या वे इसमें सफल हो सकते है. उन्होंने बताया कि इससे स्वास्थ्य को लेकर बड़े स्तर पर भ्रामक जानकारी दी जा सकती है.
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यह था शोधकर्ताओं का लक्ष्य
शोधकर्ताओं ने बताया कि उनका लक्ष्य महज 65 मिनट के अंदर कई भाषाओं में 102 झूठे पोस्ट बनाना था. उनके निशाने पर गर्भवती महिला, क्रॉनिक हेल्थ कंडीशन से जूझ रहे लोग और युवा थे. इन शोधकर्ताओं ने अपने ब्लॉग में ऐसी तस्वीरों और वीडियो का इस्तेमाल किया है जो बिलकुल असली नजर आते हैं.
पोस्ट में 20 ऐसी तस्वीरों का इस्तेमाल हुआ है जो नकली थी लेकिन AI की मदद से वे बिलकुल असली नजर आती है. पूरी तरह से लोगों को भ्रमित करने का कार्य ऑस्ट्रेलिया के इन शोधकर्ताओं ने किया. हालांकि यह उनका शोध था. इसमें उन्होंने AI तकनीक पर स्वाकल खड़े कर दिए. साथ ही हेल्थ इंडस्ट्री भी सवालों के घेरे में है