Budhni Manjhiyain: ‘Nehru’s Tribal Wife’: अगर आपने कभी पंडित नेहरू के बारे में रिसर्च की है तो आपने निश्चित तौर पर बुधनी मांझीयान का भी नाम सुना होगा। बुधनी को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आदिवासी पत्नी के रूप में भी जाना जाता है। हालांकि उन्हें इसकी वजह से काफी दिक्कतें भी झेलनी पड़ी थी। जानिए क्या है बुधनी की कहानी
कौन थी Budhni Manjhiyain
देश के पूर्वोत्तर में एक आदिवासी जाति रहती है जिसे संथाल के नाम से जाना जाता है। बुधनी इसी जाति से आती थी। भारत की आजादी के बाद देश में नवनिर्माण का दौर शुरू हआ। इस क्रम में धनबाद के निकट पांचेट बांध बन रहा था। इसके लिए जिन आदिवासियों की जमीन अधिगृहीत की गई थी, उनमें बुधनी का परिवार भी शामिल था।
बाद में बुधनी ने किसी तरह बांध निर्माण पर मजदूरी का काम पकड़ लिया और वहीं मजदूरी करने लगी। तब तक उसका नाम कोई नहीं जानता था। असली कहानी बांध के उद्घाटन के बाद शुरू हुई।
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इस तरह बनी बुधनी, पंडित नेहरू की आदिवासी पत्नी (Nehru’s Tribal Wife)
बांध का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद नेहरू इसका उद्घाटन करने आए। उनके सामने ही बुधनी ने बांध का बटन दबाकर शुभारंभ किया। उस दौरान उन्हें लोगों ने फूलमालाएं पहनाईं। इन्हीं में से एक माला उतारकर उन्होंने वहां खड़ी 16-वर्षीय बुधनी के गले में डाल दी जो कि बांध के निर्माण में जुटे श्रमिकों के प्रति समर्पण और धन्यवाद का प्रतीक था। इसके बाद ही पूरी कहानी शुरू हुई।
नेहरू का माला पहनाना बना बुधनी के लिए समस्याओं का पिटारा
दरअसल बुधनी की जाति में माला पहनाना विवाह का संकेत माना जाता है। ऐसे में उनकी जाति ने न केवल बुधनी को जवाहरलाल नेहरू की पत्नी माना। परन्तु जाति से बाहर विवाह करने का आरोप लगाते हुए उसे जाति से बाहर भी निकाल दिया। बुधनी को उसके अपने गांव और घर से निकाला दे दिया गया।
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दूसरे मजदूर के घर में ली शरण (Budhni Manjhiyain Marriage)
ऐसे में बुधनी के पास अपना सिर छिपाने के लिए कोई जगह नहीं बची। वह इधर-उधर काम करती रही। तब एक साथी मजदूर सुधीर दत्ता ने उसे अपने घर में शरण दी और उसके साथ विवाह किया। दोनों पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में चले गए और वहीं पर अपनी गृहस्थी बसा ली। हालांकि उन्हें हमेशा ही देश के पहले प्रधानमंत्री की आदिवासी पत्नी के रूप में पहचाना गया।
राजीव गांधी ने दिलाई सरकारी नौकरी
वर्ष 1985 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का आसनसोल जाना हुआ। वहां पर उन्हें बुधनी के बारे में पता चला और उन्होंने तुरंत ही उसे दामोदर वैली कॉर्पोरेशन (DVC) में सरकारी नौकरी दिला दी। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के अनुसार वह 2005 में अपने पद से रिटायर हुई।
हाल ही हुई बुधनी की मौत (Budhni Manjhiyain Death)
अपनी नौकरी से रिटायर होने के बाद बुधनी अपनी बेटी रत्ना के साथ रहती थी। हाल ही 17 नवंबर को उनका निधन हो गया। उनके निधन पर आसपास के स्थानीय नेता, अधिकारी और बहुत से लोगों भी आएं।